tag:blogger.com,1999:blog-216581462024-03-07T15:26:01.693+05:30Srijan ShilpiBetter persons are required for a better worldSrijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1153896635262679272006-07-26T12:06:00.000+05:302007-05-23T12:24:13.138+05:30सृजन शिल्पी का स्थायी पतामित्रो,
सृजन शिल्पी का पता स्थायी रूप से बदल गया है। इस बदलाव के लिए ब्लॉगस्पॉट पर अल्पकालीन सरकारी प्रतिबंध निमित्त बना। लेकिन जैसी कि कहावत है, बदलाव अक्सर बेहतरी के लिए होता है। तो आइए न....... अब वहीं मिलते हैं, मेरे स्थायी पते पर।Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1153687422347321182006-07-24T02:11:00.000+05:302007-04-11T15:35:00.549+05:30चिट्ठाकारिता और उसकी प्रकृतिचिट्ठाकारी (ब्लॉगिंग) को आम तौर पर अनौपचारिक लेखन ही माना जाता है। अनौपचारिकता शायद इसकी प्रकृति में ही है। जैसा कि मार्शल मैक्लुहान ने कहा है, “माध्यम ही संदेश है”, हर माध्यम अपने द्वारा प्रसारित संदेश और पाठक, श्रोता अथवा दर्शक पर होने वाले उसके असर को एक विशिष्ट प्रकार से अनुकूलित करता है। ब्लॉग वेब पर प्रकाशन का एक ऐसा माध्यम है, जो लेखन को पाठक तक पहुंचाने और लेखक तथा पाठक के बीच परस्पर Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1151079553069737702006-06-23T21:46:00.000+05:302006-06-23T22:21:39.056+05:30क्या करें ?कुछ वर्ष पहले मैंने क्या करें (What to do) नामक एक उपन्यास पढ़ा था, जिसके लेखक मशहूर रूसी लेखक निकोलाई चेर्नीशेव्स्की हैं। यह दुनिया की कुछ चुनिंदा किताबों में से है। यह लेनिन और महात्मा गाँधी की सबसे प्रिय किताबों में से थी। इस उपन्यास में रहमेतोव, लोपुखोव और किरतानेव जैसे उदात्त नायकों की परिकल्पना की गई है जो नए और परिष्कृत मानव के आदर्श को निरूपित करते हैं। इसका महत्व इस दृष्टि से अधिक है कि Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1150908115454350052006-06-21T22:05:00.000+05:302006-06-21T22:21:40.866+05:30अर्धनारीश्वर और वाणभट्ट की आत्मकथाइटली निवासी चिट्ठाकार मित्र सुनील जी ने अपने चिट्ठे पर प्रकाशित लेख ‘मैं शिव हूँ’ में मेरी एक टिप्पणी का उल्लेख करते हुए मुझसे हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास ‘वाणभट्ट की आत्मकथा’ के आधार पर किसी व्यक्ति में पुरुष और स्त्री के द्वंद्व का भारतीय दर्शन के दृष्टिकोण से विश्लेषण करने का अनुरोध किया है। उनके अनुरोध को ध्यान में रखते हुए उक्त उपन्यास को मैंने एक बार फिर से पढ़ा। उपन्यास में वर्णित Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1150433579535200532006-06-16T10:16:00.000+05:302006-11-08T12:41:35.613+05:30मेरा जन्म दिन और मूल नक्षत्रआज, 16 जून को मेरा जन्म दिन है। यही मेरी वास्तविक जन्म तिथि है, हालाँकि आधिकारिक प्रयोजनों के लिए मेरी जन्म तिथि 3 जनवरी है। जे.एन.यू. में अपने अध्ययन काल में और उसके कुछ वर्षों बाद तक मैं 3 जनवरी को ही अपना जन्म दिन मनाया करता था जिसमें मेरे बहुत से घनिष्ठ मित्र शामिल होते थे। मेरी मित्र-मंडली में दिल्ली के विभिन्न न्यूज चैनलों एवं समाचार पत्रों में कार्यरत युवा पत्रकार और दिल्ली के विभिन्न Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1148596830173003942006-05-30T14:35:00.000+05:302006-07-24T13:27:24.496+05:30आरक्षण : विरोध के बावजूदतमाम विरोध प्रदर्शनों और मीडिया द्वारा उसे लगभग एकतरफा एवं पक्षपातपूर्ण ढंग से तूल दिए जाने के बावजूद केन्द्र सरकार ने अगले शैक्षिक सत्र से पिछड़ी जातियों के लिए 27% आरक्षण के प्रावधान को लागू करने का निर्णय कर ही लिया। संवैधानिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सत्ताधारी गठबंधन के बीच आम सहमति को अमल में लाने के लिए सरकार के पास इसके सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं था। बेहतर Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1147199525297875172006-05-29T14:30:00.000+05:302006-07-01T15:26:01.980+05:30आरक्षण के समर्थन में मुखर अन्य प्रभावी स्वरहंस, जून, 2006अर्जुनों का विद्रोहThe Hindu, 18 June, 2006The return of discrimination
Frontline, 03-16 June, 2006Pride and prejudice
IBN Live.com, 10 June, 2006No review of quota policy: FM CNN-IBN, 10 June, 2006Majority of Indians want quotaRediff.com, 10 June, 2006Quotas and the notion of meritThe Hindu, 9 June, 2006Need for implementation of quota stressedThe Times of India, 7 June, 2006A Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1145696490028382712006-04-22T14:23:00.000+05:302006-11-23T12:30:26.476+05:30आरक्षण बनाम योग्यतायह सही है कि आरक्षण का मुद्दा भारत में राजनीतिज्ञों के लिए वोटबैंक को बढ़ाने और बरकरार रखने का हथियार बन चुका है। यह भी सही है कि आरक्षण के प्रावधान से विकास की रफ्तार बाधित होती है। यह भी सही है कि आरक्षण के कारण कुछ योग्य लोग बेहतर अवसरों के लाभ से वंचित रह जाते हैं और उनके स्थान पर अपेक्षाकृत कम योग्य लोगों को वह अवसर मिल जाता है। यह भी सही है कि आरक्षण एक अस्थायी उपाय है जिसे लंबे समय तक लागूSrijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1144969361433138852006-04-14T04:32:00.000+05:302006-06-03T16:26:05.283+05:30प्रायोजित आरक्षण-विरोध का पर्दाफाशपिछड़े वर्गों के लिए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण से संबंधित केन्द्र सरकार के प्रस्ताव पर विरोध को रणनीतिक ढंग से प्रायोजित करने के लिए कुछ पत्रकारों ने जिस तरह से पत्रकारिता के मानदंडों की धज्जियाँ उड़ाते हुए अपनी जाति दिखायी है, उससे भारतीय पत्रकारिता के आदर्शों को धक्का लगा है। पत्रकारिता को इस तरह शर्मसार किया जाना ‘द हिन्दू’ से नहीं देखा गया और उसके राजनीतिक Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1144739917431520632006-04-11T12:43:00.000+05:302006-04-11T12:48:37.493+05:30आरक्षण पर शरद यादव की रायमंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शरद यादव ने बी.बी.सी. के साथ बातचीत में उन राजनीतिक परिस्थितियों का खुलासा किया है, जिसमें पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता खोल पाना संभव हो पाया।Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1144739300827812772006-04-11T12:30:00.000+05:302006-04-11T12:38:21.086+05:30विश्वनाथ प्रताप सिंह की रायपिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के संबंध में मंडल आयोग की सिफारिशों को आंशिक रूप से लागू करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बी.बी.सी. के साथ इस विषय पर एक बातचीत में अपने दृष्टिकोण को साफगोई के साथ व्यक्त किया।Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1144607567434764902006-04-09T23:55:00.000+05:302006-06-03T16:27:57.760+05:30पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण पर बहसवर्चस्व और प्रतिरोध की पृष्ठभूमि
समाज में शांति, सौहार्द और समरसता स्थापित करने के लिए समानता और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना अनिवार्य है। लेकिन भारतीय समाज में समानता और स्वतंत्रता कभी वास्तविकता नहीं रही। पुरातन काल से ही हमारे यहाँ व्यक्ति को समाज की स्वतंत्र इकाई के रूप में देखने के बजाय उन्हें जाति और वर्ण व्यवस्था के दायरे में आबद्ध माना जाता रहा। वर्ण-व्यवस्था का सूत्रपात करते समय भले ही Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1144516965472355942006-04-08T22:47:00.000+05:302006-04-08T23:25:05.236+05:30नसीहतें कोई आदमी इतना बुरा नहीं होता कि<?xml:namespace prefix = o ns = "urn:schemas-microsoft-com:office:office" />अपनी गलती का अहसास कभी कर न सके।वहम का कोई जाल इतना सघन नहीं होता किउसको काटकर ग़लतफ़हमी दूर न की जा सके।’कोई जख्म इतना गहरा नहीं होता किवक्त के साथ भर न जाए। कोई फासला इतना बड़ा नहीं होता किउसको तय कर करीब न आया जा सके।कोई मुश्किल ऐसी नहीं होती किकोशिशों से आसान न बन जाए।कोई मंजिल इतनी दूरSrijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1142622652393261942006-03-18T00:35:00.000+05:302006-03-18T00:49:21.600+05:30इंतजार कब से इंतजार कर रहा हूँ मैं<?xml:namespace prefix = o ns = "urn:schemas-microsoft-com:office:office" />कि तुम उतरो मेरे आँगन मेंऔर मेरे हाथों में हाथ डालकरमेरे साथ नाचो, गाओ, झूमोदेखो, मैं कितना खुश हूँपर खुशी को अकेले तो भोगा नहीं जा सकतातुम भी आओ मेरे साथमेरी खुशियों के सहभागी बनोतुम आओगे तो मैं यह भी भूल जाऊँगा कि मैं किसी कारण से खुश थामैं तो तुम्हारे आने की खुशी में ही पागल हो Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1142620544947969322006-03-18T00:00:00.000+05:302006-03-18T00:20:13.280+05:30बढ़ जाओ आगे तुमबढ़ जाओ आगे तुम
मैंने राह छोड़ दी है तुम्हारे लिए
नहीं, हारा नहीं हूँ मैं
पर मैं तुमसे लड़ा ही कब था
मैंने लड़ना-भिड़ना छोड़ दिया है
तुम इसे कायरता या पलायन मानते हो तो मानते रहो
पर यह तुम भी जानते हो कि मैं वास्तव में क्या हूँ
मेरे काम स्वयं ही प्रमाण हैं मेरी क्षमताओं के
नहीं जरूरत है किसी सर्टिफ़िकेट की उसे।
तुम तो कर्ण को भी अर्धरथी ही कहोगे
सुभाष की जीत को तुम अपनी हार मान लोगे
तुम जैसे लोगSrijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1142615439892976662006-03-17T22:38:00.001+05:302006-03-17T22:40:39.896+05:30चिर-प्रतीक्षितकब से सुन रहा हूँ सुदूर से आती हुई
तुम्हारे पदचापों की मधुर ध्वनि
आ रहे हो तुम
धीरे-धीरे हमारे बीच
तुम्हारे आने की ख़बर
हमें सदियों से है
हम हर घड़ी तुम्हारे ही इंतजार में रहे हैं।
पहुँच चुके हैं धरा पर
तुम्हारे पगों के स्पंदन
आ तो चुके हो मगर छुपे हो
आम लोगों की ओट में
न हो तुम कोई राजकुमार
और न ही किसी पंडित की संतान
न तो तुम किसी नेता के बेटे हो
और न ही किसी अफसर के पुत्र
इतने सीधे-साधे हो Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1142193854056423372006-03-13T01:31:00.000+05:302006-06-03T16:31:46.700+05:30समीक्षा: 'शब्दभंग' (मारीशस का हिन्दी उपन्यास)व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ने की आदर्शवादी चाह और साथ ही व्यक्तिगत जीवन में उन्नति के सोपान चढ़ने व अपने प्रियजनों के लिए सुख-सुविधा हासिल करने की महत्वाकांक्षा के द्वंद्व के कारण जिंदगी किस तरह बीहड़ और खतरनाक परिस्थितियों में उलझ जाती है और कई बार तमाम संघर्ष व कष्ट के बाद भी अंतत: हार और हताशा ही हाथ लगती है, इस कथानक को समकालीन दौर के साहित्य, रंगमंच व फिल्म में कई बार अपने-अपने Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1142091156302282742006-03-11T21:00:00.000+05:302006-06-03T16:40:52.390+05:30क्या है लाभ के पद की परिभाषा ?निर्वाचन आयोग ने समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह को उत्तर प्रदेश विकास परिषद के अध्यक्ष के रूप में लाभ का पद धारण करने के कारण राज्य सभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किए जाने के मामले में जारी नोटिस का उत्तर 31 मार्च तक देने के लिए कहा है। निर्वाचन आयोग ने यह कदम इस संबंध में की गई एक शिकायत पर कार्रवाई करने हेतु राष्ट्रपति द्वारा निर्वाचन आयोग से राय मांगे जाने के बाद उठाया है। इससे पहले Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1140813665886852472006-02-25T02:03:00.000+05:302006-06-03T16:43:18.513+05:30समय योगसमय योग मानव आत्माओं के लिए पूर्णता पाने का एक नूतन मार्ग है। इस योग में समय की साधना परमात्मा की शाश्वत अभिव्यक्ति के रूप में की जाती है।
जीवन ऊर्जा नैसर्गिक है जिसे प्रकृति ने हमें प्रदान किया है। मानव केवल इसकी दिशा को अनुकूलित कर सकता है। जीवन ऊर्जा को अनुकूल सृजनशील दिशा देने की प्रक्रिया समय योग है। यह प्रकृति-प्रदत्त जीवन ऊर्जा जब समय योग के सहारे किसी कुशल व्यक्ति में सृजनशील दिशा का Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1140465595989069622006-02-21T01:28:00.000+05:302006-06-03T16:45:59.296+05:30कब मिलेगा आवास का मौलिक अधिकार“सबै भूमि गोपाल की”-- क्या यह उक्ति आज के संदर्भ में भी सार्थक है? पूरी धरती की बात फिलहाल हम नहीं कर सकते। क्या भारत के समस्त भू-क्षेत्र पर सभी नागरिकों का समान अधिकार है? क्या भारत के सभी नागरिकों को आवश्यकता के अनुरूप आवास की समुचित व्यवस्था का मौलिक अधिकार प्राप्त है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (ङ) के तहत सभी नागरिकों को “भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का” मौलिकSrijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1140381496818236802006-02-20T02:05:00.000+05:302006-02-25T00:32:04.186+05:30भारत में पसारे बर्ड फ़्लू ने पैरमहाराष्ट्र के नंदुरबार और धुले ज़िलों में स्थित मुर्ग़ीपालन फार्मों में पिछले दस दिनों से बड़ी संख्या में मुर्गियों के मरने का सिलसिला चल रहा था। मुर्गीपालन से जुड़े स्थानीय लोग इसे ‘रानीखेत’ नामक एक मौसमी बीमारी मानकर चल रहे थे, लेकिन जब तक प्रशासन को संकट की गंभीरता का पता चल पाता, देर हो चुकी थी और लाखों मुर्गियाँ इसकी चपेट में आ चुकी थीं। 18 फरवरी को भोपाल स्थित पशु रोग प्रयोगशाला में इन Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1140196916297078082006-02-17T22:49:00.000+05:302006-02-20T23:33:33.736+05:30भारत में ग्रामीण पत्रकारिता का वर्तमान स्वरूपगाँवों के देश भारत में, जहाँ लगभग 80% आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है, देश की बहुसंख्यक आम जनता को खुशहाल और शक्तिसंपन्न बनाने में पत्रकारिता की निर्णायक भूमिका हो सकती है। लेकिन विडंबना की बात यह है कि अभी तक पत्रकारिता का मुख्य फोकस सत्ता की उठापठक वाली राजनीति और कारोबार जगत की ऐसी हलचलों की ओर रहा है, जिसका आम जनता के जीवन-स्तर में बेहतरी लाने से कोई वास्तविक सरोकार नहीं होता। पत्रकारिता Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1138647831571949062006-01-31T00:16:00.000+05:302006-01-31T00:33:51.583+05:30गाँधी : एक पुनर्विचार आज शहीद दिवस यानी गाँधीजी की शहादत की 58वीं पुण्य तिथि पर मेरा मन कुछ ऐसे सवालों की ओर जाता है, जो आज की नई पीढ़ी के लिए प्रासंगिक होते हुए भी अबूझ किस्म की हैं। गाँधीजी को याद करते हुए कुछ लोग कहते हैं कि आज भारत को फिर से किसी गाँधी की जरूरत है। महात्मा गाँधी ने अपने जीवन काल में, अपने समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जो कुछ किया, क्या आज की परिस्थितियों में उन्हीं सिद्धांतों और Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1138543872670836402006-01-29T19:41:00.000+05:302006-01-29T20:52:48.523+05:30
जैसी दुनिया है, उससे बेहतर चाहिए। बेहतर दुनिया के लिए बेहतर इंसान चाहिए।Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-21658146.post-1138537645145382142006-01-29T17:48:00.000+05:302006-01-29T17:57:25.146+05:30सृजन को बनाएँ मुक्ति का माध्यमजब प्रकृति प्रदत्त जीवन ऊर्जा किसी कुशल व्यक्ति में अनुकूल सृजनशील दिशा का संधान कर लेती है तो वह सृजनकारी बन जाती है। यदि उस सृजन में सत्य की शक्ति और सबके प्रति प्रेम का आकर्षण मौजूद हो और वह निष्काम भाव से मानव धर्म की सदभावना के साथ सबको न्याय सुनिश्चित कराने की दिशा में प्रेरित हो तो जीवन ऊर्जा का चक्र पूरा हो जाता है और वह आत्मा को मुक्त कर देती है। Srijan Shilpihttp://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.com0