Wednesday, July 26, 2006
सृजन शिल्पी का स्थायी पता
मित्रो,
सृजन शिल्पी का पता स्थायी रूप से बदल गया है। इस बदलाव के लिए ब्लॉगस्पॉट पर अल्पकालीन सरकारी प्रतिबंध निमित्त बना। लेकिन जैसी कि कहावत है, बदलाव अक्सर बेहतरी के लिए होता है। तो आइए न....... अब वहीं मिलते हैं, मेरे स्थायी पते पर।
Monday, July 24, 2006
चिट्ठाकारिता और उसकी प्रकृति
चिट्ठाकारी (ब्लॉगिंग) को आम तौर पर अनौपचारिक लेखन ही माना जाता है। अनौपचारिकता शायद इसकी प्रकृति में ही है। जैसा कि मार्शल मैक्लुहान ने कहा है, “माध्यम ही संदेश है”, हर माध्यम अपने द्वारा प्रसारित संदेश और पाठक, श्रोता अथवा दर्शक पर होने वाले उसके असर को एक विशिष्ट प्रकार से अनुकूलित करता है। ब्लॉग वेब पर प्रकाशन का एक ऐसा माध्यम है, जो लेखन को पाठक तक पहुंचाने और लेखक तथा पाठक के बीच परस्पर संवाद के लिए एक सहज, तत्क्षण और अनौपचारिक विकल्प प्रदान करता है। लेखन के इतिहास में ब्लॉग शायद पहला ऐसा माध्यम है जिसमें लेखक और पाठक के बीच में कोई मध्यस्थ नहीं है। यह लेखक और पाठक, दोनों के लिए सुकूनदायक है। किसी मध्यस्थ के माध्यम से अभीष्ट तक पहुँचना कितना पीड़ादायी है, इसे धूमिल ने अपनी प्रसिद्ध कविता में कुछ इस तरह से व्यक्त किया है:
पारंपरिक लेखन में लेखक और पाठक के बीच प्रकाशक, विक्रेता और समीक्षक आते हैं। प्रकाशक और विक्रेता जहाँ लेखन से होने वाले मुनाफ़े को हड़पने के कारोबार में माहिर होते हैं, वहीं समीक्षक लेखन के मानक और लेखक के स्तर को कृत्रिम ढंग से निर्धारित करने के खेल के उस्ताद। यहाँ तक कि अंतर्जाल (इंटरनेट) आने के बाद जब वेबसाइटों के माध्यम से लेखक और पाठक के बीच की दूरी को मिटाने की क्रांतिकारी कोशिश शुरू हुई तब भी वेब प्रकाशन की तकनीकी जटिलता के कारण वेब डिजाइनरों और वेब डेवलपरों की सेवाओं का सहारा लेना आवश्यक ही रहा। वर्ष 1997 में ब्लॉग के आने के बाद से लेखक और पाठक के बीच मध्यस्थ की भूमिका लुप्त हो गई। मुनाफ़ा और मानक का तत्व हट जाने, लेखन का सहज रूप से तत्क्षण प्रकाशित हो जाने की सुविधा मिल जाने और पाठक के बीच पैठ बना सकने के लिए पेशेवर विशेषज्ञता आवश्यक नहीं रह जाने के कारण पारंपरिक लेखन की गंभीरता और औपचारिकता से अलग ब्लॉग लेखन की एक नई शैली के विकास का माध्यम बना, जिसकी प्रकृति अनौपचारिक, सामूहिक, परस्पर संवादी और लोकतांत्रिक है। …… (क्रमश:)एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है
न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ कि
यह तीसरा आदमी कौन है
मेरे देश की संसद मौन है।
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