समय योग मानव आत्माओं के लिए पूर्णता पाने का एक नूतन मार्ग है। इस योग में समय की साधना परमात्मा की शाश्वत अभिव्यक्ति के रूप में की जाती है। जीवन ऊर्जा नैसर्गिक है जिसे प्रकृति ने हमें प्रदान किया है। मानव केवल इसकी दिशा को अनुकूलित कर सकता है। जीवन ऊर्जा को अनुकूल सृजनशील दिशा देने की प्रक्रिया समय योग है। यह प्रकृति-प्रदत्त जीवन ऊर्जा जब समय योग के सहारे किसी कुशल व्यक्ति में सृजनशील दिशा का संधान कर लेती है तो वह सृजनकारी बन जाती है। यदि उस सृजन में सत्य की शक्ति और सबके प्रति प्रेम का आकर्षण मौजूद हो और वह निष्काम भाव से मानव धर्म की सदभावना के साथ सबको न्याय सुनिश्चित कराने की दिशा में प्रेरित हो तो जीवन ऊर्जा का चक्र पूरा हो जाता है और वह आत्मा को मुक्त कर देती है। यदि जीवन ऊर्जा को अनुकूल सृजनकारी दिशा नहीं मिल पाती है तो वह भूख, नींद और वासना की गिरफ्त में फँस कर रह जाती है और आत्मा को आजीवन दु:ख, भय और विफलता से संतप्त करती रहती है। जैसा कि सभी जानते हैं कि समय के तीन आयाम हैं – भूत, वर्तमान और भविष्य। आपकी नियति का निर्धारण इस बात से होता है कि आपकी चेतना की गति किस आयाम की ओर उन्मुख है। समय के प्रवाह के प्रति सतत जागरूक रहते हुए हमेशा वर्तमान क्षण में उपस्थित रहना ही समय योग है। समय और श्रम एक-दूसरे से संबद्ध हैं और यह संबंध श्रम की तीव्रता यानी गति से परिभाषित होता है। यदि श्रम की गति तीव्र है तो समय कम लगता है और यदि गति कम हो तो समय अधिक लगता है। समय और श्रम के बीच तीव्रता का निर्धारण प्रतिभा के आधार पर होता है। प्रत्येक कार्य को पूरा करने के लिए एक समय-सीमा निर्धारित होनी चाहिए और उस समय-सीमा के अनुपालन को ध्यान में रखते हुए कार्य की गति निर्धारित की जानी चाहिए। अतएव, समय योगियों को अपने प्रत्येक कार्य की एक योजना बनानी चाहिए और उस योजना को निर्धारित समय-सीमा के भीतर कार्यान्वित करने की आदत डालनी चाहिए। रात्रि में नियत समय पर सो जाने और सुबह में नियत समय पर जाग जाने का अभ्यास जीवन में समय योग का प्रारंभ है। रात्रि में अर्धरात्रि से पहले सो जाना और सुबह में सूर्योदय से पहले जग जाना बेहतर है। इसे दिनचर्या का नियम बना लेना चाहिए और निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध समय, श्रमशक्ति और बुद्धि का भरपूर उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। इन तीन संपदाओं की बचत नहीं की जा सकती, इनका सदुपयोग नहीं करने से ये हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं। हमारी बुद्धि हमेशा समय के खेत में श्रम के बीज बोने में लगी रहनी चाहिए। समय, बुद्धि और श्रम के नियोजन के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं – स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार। हमें अपनी दिनचर्या में कम से कम दो घंटे स्वास्थ्य के लिए, चार घंटे शिक्षा के लिए और आठ घंटे रोजगार के लिए नियोजित करने चाहिए। हमारी बुद्धि हमेशा श्रम और समय के सुनियोजन की दिशा में प्रेरित रहे, इसके लिए हमें अपने जीवन के उद्देश्य का सतत स्मरण रहना चाहिए। यदि हमें अपने जीवन में सुखी रहना है तो हमारे पास ज्ञान, संपत्ति और शक्ति का होना आवश्यक है। इसलिए हमें अपने ज्ञान, संपत्ति और शक्ति के विकास की दिशा में निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। लेकिन ज्ञान, संपत्ति और शक्ति की सार्थकता तभी है जब इससे सत्य, प्रेम और न्याय की प्रतिष्ठा की जा सके। हमारे जीवन का मूल उद्देश्य स्वतंत्रता, मित्रता और समानता की उपलब्धि करना है ताकि हम मौन, प्रार्थना और शांति के दिव्य परमात्म लोक में शाश्वत प्रवेश पा सकें। समय योग का अनुपालन करने से हमें अपने वास्तविक व्यक्तित्व की पहचान करने में मदद मिलती है। जब हम समय के वर्तमान प्रवाह के साक्षी बन रहे होते हैं उस समय हमारी सुषुम्णा नाड़ी सक्रिय हो जाती है और हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा सहज ही उच्चतर चक्रों की ओर बढ़ने लगती है। जो समय के वर्तमान प्रवाह के प्रति हमेशा सजग है उसी को संतुलित व्यक्ति कहा जा सकता है। जिसकी दिनचर्या में सहजता, संतुलन और साक्षीभाव सदैव कायम है, केवल वही सही पथ पर है। अपने अतीत से सबक लीजिए, भविष्य के लिए अपने को तैयार कीजिए, लेकिन वर्तमान में सक्रिय रहिए। समय का पालन कीजिए, लेकिन सहज बने रहिए। उसके लिए तनाव मोल नहीं लीजिए। यदि सही समय पर आप काम आरंभ करेंगे और श्रम की गति को संतुलित बनाए रखेंगे तो काम सही समय पर समाप्त हो जाएगा। समय योग के साधकों के आराध्य हैं – सूर्य, धरती और चन्द्रमा। मानव जीवन के मूल आधार ये तीन ही हैं और इन्हीं से मानव का जीवन सर्वाधिक प्रभावित और प्रेरित होता है। इसलिए किन्हीं कल्पित देवी-देवताओं की आराधना करने से बेहतर है इन प्रत्यक्ष, जीवन्त और साकार तत्वों की आराधना करना।
Saturday, February 25, 2006
Tuesday, February 21, 2006
कब मिलेगा आवास का मौलिक अधिकार
Monday, February 20, 2006
भारत में पसारे बर्ड फ़्लू ने पैर
Friday, February 17, 2006
भारत में ग्रामीण पत्रकारिता का वर्तमान स्वरूप
गाँवों के देश भारत में, जहाँ लगभग 80% आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है, देश की बहुसंख्यक आम जनता को खुशहाल और शक्तिसंपन्न बनाने में पत्रकारिता की निर्णायक भूमिका हो सकती है। लेकिन विडंबना की बात यह है कि अभी तक पत्रकारिता का मुख्य फोकस सत्ता की उठापठक वाली राजनीति और कारोबार जगत की ऐसी हलचलों की ओर रहा है, जिसका आम जनता के जीवन-स्तर में बेहतरी लाने से कोई वास्तविक सरोकार नहीं होता। पत्रकारिता अभी तक मुख्य रूप से महानगरों और सत्ता के गलियारों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की ख़बरें समाचार माध्यमों में तभी स्थान पाती हैं जब किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा या व्यापक हिंसा के कारण बहुत से लोगों की जानें चली जाती हैं। ऐसे में कुछ दिनों के लिए राष्ट्रीय कहे जाने वाले समाचार पत्रों और मीडिया जगत की मानो नींद खुलती है और उन्हें ग्रामीण जनता की सुध आती जान पड़ती है। खासकर बड़े राजनेताओं के दौरों की कवरेज के दौरान ही ग्रामीण क्षेत्रों की ख़बरों को प्रमुखता से स्थान मिल पाता है। फिर मामला पहले की तरह ठंडा पड़ जाता है और किसी को यह सुनिश्चित करने की जरूरत नहीं होती कि ग्रामीण जनता की समस्याओं को स्थायी रूप से दूर करने और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए किए गए वायदों को कब, कैसे और कौन पूरा करेगा।
सूचना में शक्ति होती हैं। हाल ही में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के जरिए नागरिकों को सूचना के अधिकार से लैस करके उन्हें शक्ति-संपन्न बनाने का प्रयास किया गया है। लेकिन जनता इस अधिकार का व्यापक और वास्तविक लाभ पत्रकारिता के माध्यम से ही उठा सकती है, क्योंकि आम जनता अपने दैनिक जीवन के संघर्षों और रोजी-रोटी का जुगाड़ करने में ही इस क़दर उलझी रहती है कि उसे संविधान और कानून द्वारा प्रदत्त अधिकारों का लाभ उठा सकने के उपायों को अमल में लाने की चेष्टा करने का अवसर ही नहीं मिल पाता।
ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा, गरीबी और परिवहन व्यवस्था की बदहाली की वजह से समाचार पत्र-पत्रिकाओं का लाभ सुदूर गाँव-देहात की जनता नहीं उठा पाती। बिजली और केबल कनेक्शन के अभाव में टेलीविज़न भी ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुँच पाता। ऐसे में रेडियो ही एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो सुगमता से सुदूर गाँवों-देहातों में रहने वाले जन-जन तक बिना किसी बाधा के पहुँचता है। रेडियो आम जनता का माध्यम है और इसकी पहुँच हर जगह है, इसलिए ग्रामीण पत्रकारिता के ध्वजवाहक की भूमिका रेडियो को ही निभानी पड़ेगी। रेडियो के माध्यम से ग्रामीण पत्रकारिता को नई बुलंदियों तक पहुँचाया जा सकता है और पत्रकारिता के क्षेत्र में नए-नए आयाम खोले जा सकते हैं। इसके लिए रेडियो को अपना मिशन महात्मा गाँधी के ग्राम स्वराज्य के स्वप्न को साकार करने को बनाना पड़ेगा और उसको ध्यान में रखते हुए अपने कार्यक्रमों के स्वरूप और सामग्री में अनुकूल परिवर्तन करने होंगे। निश्चित रूप से इस अभियान में रेडियो की भूमिका केवल एक उत्प्रेरक की ही होगी। रेडियो एवं अन्य जनसंचार माध्यम सूचना, ज्ञान और मनोरंजन के माध्यम से जनचेतना को जगाने और सक्रिय करने का ही काम कर सकते हैं। लेकिन वास्तविक सक्रियता तो ग्राम पंचायतों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले पढ़े-लिखे नौजवानों और विद्यार्थियों को दिखानी होगी। इसके लिए रेडियो को अपने कार्यक्रमों में दोतरफा संवाद को अधिक से अधिक बढ़ाना होगा ताकि ग्रामीण इलाक़ों की जनता पत्रों और टेलीफोन के माध्यम से अपनी बात, अपनी समस्या, अपने सुझाव और अपनी शिकायतें विशेषज्ञों तथा सरकार एवं जन-प्रतिनिधियों तक पहुँचा सके। खासकर खेती-बाड़ी, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार से जुड़े बहुत-से सवाल, बहुत सारी परेशानियाँ ग्रामीण लोगों के पास होती हैं, जिनका संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ रेडियो के माध्यम से आसानी से समाधान कर सकते हैं। रेडियो को “इंटरेक्टिव” बनाकर ग्रामीण पत्रकारिता के क्षेत्र में वे मुकाम हासिल किए जा सकते हैं जिसे दिल्ली और मुम्बई से संचालित होने वाले टी.वी. चैनल और राजधानियों तथा महानगरों से निकलने वाले मुख्यधारा के अख़बार और नामी समाचार पत्रिकाएँ अभी तक हासिल नहीं कर पायी हैं।
टी.वी. चैनलों और बड़े अख़बारों की सीमा यह है कि वे ग्रामीण क्षेत्रों में अपने संवाददाताओं और छायाकारों को स्थायी रूप से तैनात नहीं कर पाते। कैरियर की दृष्टि से कोई सुप्रशिक्षित पत्रकार ग्रामीण पत्रकारिता को अपनी विशेषज्ञता का क्षेत्र बनाने के लिए ग्रामीण इलाक़ों में लंबे समय तक कार्य करने के लिए तैयार नहीं होता। कुल मिलाकर, ग्रामीण पत्रकारिता की जो भी झलक विभिन्न समाचार माध्यमों में आज मिल पाती है, उसका श्रेय अधिकांशत: जिला मुख्यालयों में रहकर अंशकालिक रूप से काम करने वाले अप्रशिक्षित पत्रकारों को जाता है, जिन्हें अपनी मेहनत के बदले में समुचित पारिश्रमिक तक नहीं मिल पाता। इसलिए आवश्यक यह है कि नई ऊर्जा से लैस प्रतिभावान युवा पत्रकार अच्छे संसाधनों से प्रशिक्षण हासिल करने के बाद ग्रामीण पत्रकारिता को अपनी विशेषज्ञता का क्षेत्र बनाने के लिए उत्साह से आगे आएँ। इस क्षेत्र में काम करने और कैरियर बनाने की दृष्टि से भी अपार संभावनाएँ हैं। यह उनका नैतिक दायित्व भी बनता हैं।
आखिर देश की 80 प्रतिशत जनता जिनके बलबूते पर हमारे यहाँ सरकारें बनती हैं, जिनके नाम पर सारी राजनीति की जाती हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान करते हैं, उन्हें पत्रकारिता के मुख्य फोकस में लाया ही जाना चाहिए। मीडिया को नेताओं, अभिनेताओं और बड़े खिलाड़ियों के पीछे भागने की बजाय उस आम जनता की तरफ रुख़ करना चाहिए, जो गाँवों में रहती है, जिनके दम पर यह देश और उसकी सारी व्यवस्था चलती है।
पत्रकारिता जनता और सरकार के बीच, समस्या और समाधान के बीच, व्यक्ति और समाज के बीच, गाँव और शहर की बीच, देश और दुनिया के बीच, उपभोक्ता और बाजार के बीच सेतु का काम करती है। यदि यह अपनी भूमिका सही मायने में निभाए तो हमारे देश की तस्वीर वास्तव में बदल सकती है।
सरकार जनता के हितों के लिए तमाम कार्यक्रम बनाती है; नीतियाँ तैयार करती है; कानून बनाती है; योजनाएँ शुरू करती है; सड़क, बिजली, स्कूल, अस्पताल, सामुदायिक भवन आदि जैसी मूलभूत अवसंरचनाओं के विकास के लिए फंड उपलब्ध कराती है, लेकिन उनका लाभ कैसे उठाना है, उसकी जानकारी ग्रामीण जनता को नहीं होती। इसलिए प्रशासन को लापरवाही और भ्रष्टाचार में लिप्त होने का मौका मिल जाता है। जन-प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद जनता के प्रति बेखबर हो जाते हैं और अपने किए हुए वायदे जान-बूझकर भूल जाते हैं।
ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नई-नई ख़ोजें होती रहती हैं; शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में नए-नए द्वार खुलते रहते हैं; स्वास्थ्य, कृषि और ग्रामीण उद्योग के क्षेत्र की समस्याओं का समाधान निकलता है, जीवन में प्रगति करने की नई संभावनाओं का पता चलता है। इन नई जानकारियों को ग्रामीण जनता तक पहुँचाने के लिए तथा लगातार काम करने के लिए उन पर दबाव बढ़ाने, प्रशासन के निकम्मेपन और भ्रष्टाचार को उजागर करने, जनता की सामूहिक चेतना को जगाने, उन्हें उनके अधिकारों और कर्त्तव्यों का बोध कराने के लिए पत्रकारिता को ही मुस्तैदी और निर्भीकता से आगे आना होगा। किसी प्राकृतिक आपदा की आशंका के प्रति समय रहते जनता को सावधान करने, उन्हें बचाव के उपायों की जानकारी देने और आपदा एवं महामारी से निपटने के लिए आवश्यक सूचना और जानकारी पहुँचाने में जनसंचार माध्यमों, खासकर रेडियो की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
पत्रकारिता आम तौर पर नकारात्मक विधा मानी जाती है, जिसकी नज़र हमेशा नकारात्मक पहलुओं पर रहती है, लेकिन ग्रामीण पत्रकारिता सकारात्मक और स्वस्थ पत्रकारिता का क्षेत्र है। भूमण्डलीकरण और सूचना-क्रांति ने जहाँ पूरे विश्व को एक गाँव के रूप में तबदील कर दिया है, वहीं ग्रामीण पत्रकारिता गाँवों को वैश्विक परिदृश्य पर स्थापित कर सकती है। गाँवों में हमारी प्राचीन संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान की विरासत, कला और शिल्प की निपुण कारीगरी आज भी जीवित है, उसे ग्रामीण पत्रकारिता राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर ला सकती है। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ यदि मीडिया के माध्यम से धीरे-धीरे ग्रामीण उपभोक्ताओं में अपनी पैठ जमाने का प्रयास कर रही हैं तो ग्रामीण पत्रकारिता के माध्यम से गाँवों की हस्तकला के लिए बाजार और रोजगार भी जुटाया जा सकता है। ग्रामीण किसानों, घरेलू महिलाओं और छात्रों के लिए बहुत-से उपयोगी कार्यक्रम भी शुरू किए जा सकते हैं जो उनकी शिक्षा और रोजगार को आगे बढ़ाने का माध्यम बन सकते हैं।
इसके लिए ग्रामीण पत्रकारिता को अपनी सृजनकारी भूमिका को पहचानने की जरूरत है। अपनी अनन्त संभावनाओं का विकास करने एवं नए-नए आयामों को खोलने के लिए ग्रामीण पत्रकारिता को इस समय प्रयोगों और चुनौतियों के दौर से गुजरना होगा।
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