यह संसार पदानुक्रम व्यवस्था (hierarchy) पर आधारित है। संसार और अध्यात्म के बीच का विभाजक बिन्दु पदानुक्रम व्यवस्था ही है । जब तक आप पदानुक्रम व्यवस्था के अंतर्गत हैं तब तक आप संसार में हैं और जिस क्षण आप पदानुक्रम व्यवस्था का अतिक्रमण करके साम्यावस्था में प्रविष्ट होते हैं उसी क्षण आप अध्यात्म के लोक में हैं। अमीबा से लेकर ब्रह्मा पर्यन्त सभी पदानुक्रम व्यवस्था के अंतर्गत स्थित हैं । संसार का सबसे बड़ा सत्य यही है। संसार में सबके सामने सबसे बड़ा सवाल यही रहता है कि पदानुक्रम व्यवस्था में वह इस समय किस पायदान पर है । यही प्रश्न सभी जीवों को गतिशील रखता है और यही प्रश्न हर किसी को सबसे अधिक व्यथित भी करता है । धन्य हैं वे लोग जिन्हें यह प्रश्न व्यथित नहीं करता! वे या तो निर्जीव हैं या फिर परम ब्रह्म ।
हम इस बहस में फिलहाल पड़ना नहीं चाहते कि पदानुक्रम व्यवस्था गलत है या सही और यदि गलत है तो उसका विकल्प क्या है । क्योंकि इस बहस का इस समय कोई सार्थक महत्व नहीं होगा । जिन लोगों के लिए मुक्ति जीवन का परम उद्देश्य नहीं है, उनके सामने न तो अध्यात्म का कोई मतलब है और न ही इस सवाल का कि पदानुक्रम व्यवस्था से वे कैसे बाहर निकल सकते हैं । मुक्ति हमेशा से ऐसे इक्का-दुक्का विरले व्यक्तियों का जीवनोद्देश्य रहा है जो पदानुक्रम व्यवस्था से बाहर निकल सकने का हौसला रखते हैं । हम इस यथार्थ को स्वीकार करके चलते हैं कि हमें फिलहाल इसी संसार में जीना है और पदानुक्रम व्यवस्था के अंदर रहते हुए काम करना है । क्योंकि जब तक स्वयं ब्रह्म-तुल्य कोई आत्मा इस संसार का प्रत्यक्ष नियंत्रण अपने हाथ में नहीं ले लेती तब तक पदानुक्रम व्यवस्था इस संसार का सबसे बड़ा नियामक तत्व रहने वाली है । लेकिन जब कभी ऐसा हो सकेगा तब यह संसार, संसार नहीं रहेगा बल्कि अध्यात्म लोक बन जाएगा ।
पदानुक्रम व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण चरित्र है - अपने से कमजोर पर नियंत्रण रखना, अपने से अधिक शक्तिशाली को खुश रखना और अपने समकक्ष को प्रतियोगिता में पीछे रखना । यही सामान्य सूत्र है, चाहे इसका इस्तेमाल जो, जहाँ और जैसे करे। इस सूत्र को आज़माने में जो जितना सफल है वह पदानुक्रम व्यवस्था में उतना ही वरिष्ठ है ।
पदानुक्रम व्यवस्था में वरिष्ठता निर्धारण के कई मानदंड हैं । इन मानदंडों की हम कुछ सूत्रों के माध्यम से समझाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि हम पदानुक्रम के सोपान पर आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें यह देखना होगा कि इन मानदंडों के आधार पर हमारी वर्तमान स्थिति क्या है और कैसे हम अपनी स्थिति को लगातार मजबूत करते हुए औरों से आगे निकल सकते हैं ।
ध्यान रहे, प्रतियोगिता और पदानुक्रम की इस द्वंद्व भरी राह पर प्रेम का कोई स्थान नहीं हैं। जिनसे आप प्रेम करते हैं, उनसे प्रतियोगिता नहीं कर सकते। जिनसे आप प्रतियोगिता करना चाहते हैं, उनसे प्रेम नहीं कर पाएंगे। हालाँकि प्रतियोगिता के दौरान आपको अपने प्रतियोगी को हर वक्त इसी मुगालते में रखना है कि उनसे अधिक प्रेम आपको किसी अन्य से नहीं है। वह वक्त चला गया जब आप अपने प्रतियोगी से दुश्मनी करके, उसे नीचा दिखा करके, उसका शोषण करके, उसको अपने पैरों पर कुचल कर आगे बढ़ जाते थे। क्योंकि अगर आप ऐसा करेंगे तो आपका प्रतियोगी भी आपको नीचा दिखाने की भरसक कोशिश करेगा और भले ही वह खुद भी सफल नहीं हो पाए, लेकिन आपको भी नीचे गिरा देगा। इस प्रकार, आप सीढ़ी से आगे चढ़ने के बाद साँप के मुँह में पड़कर फिर से नीचे आ जाएंगे।
इसे उदाहरण से समझें। इराक़ ने ईरान और कुवैत से आगे बढ़ने के लिए उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की, लेकिन उसके परिणामस्वरूप उसे पलटवार झेलना पड़ा और आज उसकी स्थिति इन दोनों ही देशों से काफी बदतर हो गई है। इसीलिए, अमरीका ने अपने प्रतियोगियों से मित्रता की नीति अपनाई हुई है। वह दरअसल उन्हें पछाड़कर खुद आगे बढ़ना चाहता है, लेकिन वह यह भी जानता है कि अपने मजबूत प्रतियोगियों के साथ दुश्मनी मोल नहीं ले सकता है। इसीलिए उन्हें अपना मित्र बनाए हुए है। चीन और भारत जैसे देशों से उसकी दोस्ती इसी तरह की है। यहाँ तक कि चीन और भारत जैसे देश भी अमरीका के असली इरादे से वाकिफ हैं, लेकिन यदि उन्हें स्वयं आगे बढ़ना है तो उन्हें फिलहाल अमरीका को अपने अनुकूल बनाए रखना होगा। बहरहाल, इस उदाहरण को आप व्यक्तियों के संदर्भ में अपने व्यक्तिगत जीवन में भी तलाश सकते हैं।
आपको संसार की पदानुक्रम व्यवस्था में यदि अपना स्थान आगे रखना है तो सबसे पहले आपको प्रतियोगिताओं के दौर से गुजरना होगा। आपने किस स्तर की प्रतियोगिता में कैसा स्थान पाया है, इसी से संसार की पदानुक्रम सोपान में आपका स्थान निर्धारित होगा। यदि आप भारत सरकार की सेवा में जाना चाहते हैं तो संघ लोक सेवा आयोग अथवा कर्मचारी चयन आयोग या संबंधित मंत्रालय, विभाग, संस्थान या कार्यालय द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल होकर अन्य प्रतियोगियों से खुद को श्रेष्ठतर साबित करना होगा। मान लीजिए कि आपका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो गया, तब भी उसमें आपको रैंक कैसा मिला, इसी से पूरे कैरियर में आपकी वरिष्ठता और पदोन्नति निर्धारित होगी। सभी आई.ए.एस. अधिकारी कैबिनेट सचिव नहीं बन पाते। जिसका रैंक काफी ऊपर होता है, उन्हीं को यह पद प्राप्त होने की संभावना रहती है। लेकिन यह तो महज शुरुआत है। पदानुक्रम में आपकी स्थिति अन्य बहुत सी बातों पर निर्भर करेगी।
आपसे पहले जो लोग आई.ए.एस. में आ चुके हैं, वे अपने अनुभव की वरिष्ठता की वजह से आपसे श्रेष्ठ हैं और आपके पूरे कैरियर में वे आपसे वरिष्ठ ही बने रहेंगे, भले ही आपमें उनसे अधिक प्रतिभा हो। लेकिन इसमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। भले ही उनके पास आपसे अधिक अनुभव है, फिर भी यदि आप चाहें तो उनसे आगे बढ़ने में सफल हो सकते हैं। इसके लिए आपको अपने सहकर्मियों, विशेषकर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का विश्वास जीतना होगा और उनका समर्थन हासिल करना होगा। इसके अलावा, अपने कार्य के दौरान आपका सरोकार जिन-जिन लोगों के साथ पड़ता है, यदि वे भी आपके अनुकूल हैं और आपका सहयोग करते हैं तो आप निश्चय ही दूसरों से बाजी मार ले जाएंगे। यदि आप ऐसा करने में विफल रहते हैं तो बहुत संभव है कि आगे की प्रतियोगिता में आप पीछे रह जाएं। आपके अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए भी यही श्रेयस्कर है कि आप उनके अनुकूल बने रहें। क्योंकि पदानुक्रम के इस खेल में सफलता का अगला सूत्र ही यही है कि आप अपने से वरिष्ठ को अपने अनुकूल बनाए रखें। क्योंकि आपकी पदोन्नति और कैरियर में आगे बढ़ने की सारी संभावनाएं बहुत हद तक इसी बात पर निर्भर करती है कि आपके वरिष्ठ अधिकारी आपका वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदन (ए.सी.आर.) कैसा लिखते हैं। अच्छे ए.सी.आर. के अभाव में आपकी पदोन्नति की संभावनाएँ धूमिल ही रहेंगी। मैं जो सूत्र आपको यहाँ बतला रहा हूँ, वह केवल सरकारी अधिकारियों के लिए ही नहीं है। आप चाहे किसी भी कैरियर में हों, ये सारे सूत्र उन सभी मामलों में लागू होते हैं। आपको अपने वरिष्ठ व्यक्तियों को अपने अनुकूल बनाए रखना है या यों कहिए कि उन्हें खुश रखना है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनकी चाटुकारिता करें या उनकी गलत अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए विवश रहें। आपको केवल उन्हें यह भरोसा दिलाए रखना है कि उनकी सफलता में आपका सहयोग उन्हें सतत मिलता रहेगा। आपको मैं महाभारत के कर्ण का उदाहरण देता हूँ। कर्ण प्रतियोगिता में प्राप्त प्रतिभा क्रम के मामले में अर्जुन एवं अपने समय के अन्य धनुर्धरों से कहीं आगे था। लेकिन वह पदानुक्रम में इसीलिए पिछड़ा रहा क्योंकि उसे अपने समकालीन वरिष्ठ व्यक्तियों की अनुकूलता हासिल नहीं हो सकी। भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कृष्ण और यहाँ तक कि गुरु परशुराम भी उसके अनुकूल नहीं रहे। जबकि अर्जुन इन सभी के प्रिय पात्र थे। इसी तरह आप जवाहरलाल नेहरु का उदाहरण भी देख सकते हैं। महात्मा गाँधी की सर्वाधिक अनुकूलता उन्हें ही प्राप्त थी, इसलिए वे अपने सभी समकक्ष नेताओं से पदानुक्रम सोपान में आगे निकल गए।
लेकिन प्रतियोगिता के इस सारे प्रपंच के बीच आपको कुछ बातों का ध्यान विशेष रूप से रखने की जरूरत है। आपको अपने स्वास्थ्य, समृद्धि और ज्ञान का सतत विकास करते रहना चाहिए। क्योंकि यही तीन ऐसे मूल साधन हैं जिनके माध्यम से आप इस प्रतियोगिता में टिके रह सकते हैं। यदि इन तीनों साधनों के प्रबंधन में आप अकुशल हैं तो फिर आप बहुत आगे नहीं जा सकेंगे।
इसके बाद अगला सूत्र विशेष रूप से उल्लेखनीय है। आपकी विरासत भी पदानुक्रम में आपकी स्थिति को मजबूत करने में बहुत हद तक सहायक होती है। इस संदर्भ में कर्ण का उदाहरण मैं एक बार फिर से आपको दोहराता हूँ। कर्ण के पास समस्त प्रतिभा के बावजूद पारिवारिक-सामाजिक विरासत के लाभ से वे वंचित थे। इसीलिए उन्हें जीवन भर अपमान और उपेक्षा के दौर से गुजरना पड़ा। अभिषेक बच्चन को पारिवारिक-सामाजिक विरासत का भरपूर लाभ मिला, इसलिए उसे अभिनय के कैरियर में अपने को स्थापित करने में बहुत सहायता मिली। वरना, बहुत से नए अभिनेता ऐसे हैं, जो अभिनय की गुणवत्ता के मामले में अभिषेक से कहीं बेहतर हैं, लेकिन बालीवुड में किसी फादर या गॉडफादर की छत्रछाया उन्हें हासिल नहीं है और वे अपने को स्थापित करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। लेकिन मैं आपको निराश कतई नहीं कर रहा हूँ। यदि आपको पहले से पारिवारिक-सामाजिक विरासत का लाभ नहीं मिला तो क्या हुआ। आप पदानुक्रम व्यवस्था में अपना स्थान मजबूत कीजिए और आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छी विरासत छोड़ कर जाएँ। हो सकता है कि आपकी संतान को आपकी विरासत का इतना लाभ मिल जाए कि आपको हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति हो जाए।
और अंत में, मैं आपको सबसे महत्वपूर्ण सूत्र देना चाहता हूँ। प्रतियोगिता और पदानुक्रम के इस होड़ में आप चाहे जितने सफल हो जाएँ, उसका स्थायित्व अंतत: इस बात पर निर्भर करेगा कि आपका चरित्र कैसा है और दूसरे लोगों के मन में आपकी छवि कैसी है। जब सोनिया गाँधी को प्रधान मंत्री के पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति की तलाश थी तो इस चयन का मुख्य आधार था मनमोहन सिंह का चरित्र और सोनिया के मन में उनकी छवि। इसलिए भले लोगों, आप बेशक प्रतियोगिता की होड़ में उतरें और आगे बढ़ने का भरसक प्रयास करें, लेकिन अपने चरित्र को भूल मत जाएँ। चरित्र को गँवा कर पदानुक्रम के सोपान में आप कदापि आगे नहीं बढ़ सकते। बड़े-बड़े महात्मा और ऋषि-मुनि भी चरित्र के स्खलन के उपरांत अधोगति को प्राप्त होते देखे गए हैं।
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