Saturday, February 25, 2006

समय योग

समय योग मानव आत्माओं के लिए पूर्णता पाने का एक नूतन मार्ग है। इस योग में समय की साधना परमात्मा की शाश्वत अभिव्यक्ति के रूप में की जाती है। जीवन ऊर्जा नैसर्गिक है जिसे प्रकृति ने हमें प्रदान किया है। मानव केवल इसकी दिशा को अनुकूलित कर सकता है। जीवन ऊर्जा को अनुकूल सृजनशील दिशा देने की प्रक्रिया समय योग है। यह प्रकृति-प्रदत्त जीवन ऊर्जा जब समय योग के सहारे किसी कुशल व्यक्ति में सृजनशील दिशा का संधान कर लेती है तो वह सृजनकारी बन जाती है। यदि उस सृजन में सत्य की शक्ति और सबके प्रति प्रेम का आकर्षण मौजूद हो और वह निष्काम भाव से मानव धर्म की सदभावना के साथ सबको न्याय सुनिश्चित कराने की दिशा में प्रेरित हो तो जीवन ऊर्जा का चक्र पूरा हो जाता है और वह आत्मा को मुक्त कर देती है। यदि जीवन ऊर्जा को अनुकूल सृजनकारी दिशा नहीं मिल पाती है तो वह भूख, नींद और वासना की गिरफ्त में फँस कर रह जाती है और आत्मा को आजीवन दु:ख, भय और विफलता से संतप्त करती रहती है। जैसा कि सभी जानते हैं कि समय के तीन आयाम हैं – भूत, वर्तमान और भविष्य। आपकी नियति का निर्धारण इस बात से होता है कि आपकी चेतना की गति किस आयाम की ओर उन्मुख है। समय के प्रवाह के प्रति सतत जागरूक रहते हुए हमेशा वर्तमान क्षण में उपस्थित रहना ही समय योग है। समय और श्रम एक-दूसरे से संबद्ध हैं और यह संबंध श्रम की तीव्रता यानी गति से परिभाषित होता है। यदि श्रम की गति तीव्र है तो समय कम लगता है और यदि गति कम हो तो समय अधिक लगता है। समय और श्रम के बीच तीव्रता का निर्धारण प्रतिभा के आधार पर होता है। प्रत्येक कार्य को पूरा करने के लिए एक समय-सीमा निर्धारित होनी चाहिए और उस समय-सीमा के अनुपालन को ध्यान में रखते हुए कार्य की गति निर्धारित की जानी चाहिए। अतएव, समय योगियों को अपने प्रत्येक कार्य की एक योजना बनानी चाहिए और उस योजना को निर्धारित समय-सीमा के भीतर कार्यान्वित करने की आदत डालनी चाहिए। रात्रि में नियत समय पर सो जाने और सुबह में नियत समय पर जाग जाने का अभ्यास जीवन में समय योग का प्रारंभ है। रात्रि में अर्धरात्रि से पहले सो जाना और सुबह में सूर्योदय से पहले जग जाना बेहतर है। इसे दिनचर्या का नियम बना लेना चाहिए और निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध समय, श्रमशक्ति और बुद्धि का भरपूर उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। इन तीन संपदाओं की बचत नहीं की जा सकती, इनका सदुपयोग नहीं करने से ये हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं। हमारी बुद्धि हमेशा समय के खेत में श्रम के बीज बोने में लगी रहनी चाहिए। समय, बुद्धि और श्रम के नियोजन के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं – स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार। हमें अपनी दिनचर्या में कम से कम दो घंटे स्वास्थ्य के लिए, चार घंटे शिक्षा के लिए और आठ घंटे रोजगार के लिए नियोजित करने चाहिए। हमारी बुद्धि हमेशा श्रम और समय के सुनियोजन की दिशा में प्रेरित रहे, इसके लिए हमें अपने जीवन के उद्देश्य का सतत स्मरण रहना चाहिए। यदि हमें अपने जीवन में सुखी रहना है तो हमारे पास ज्ञान, संपत्ति और शक्ति का होना आवश्यक है। इसलिए हमें अपने ज्ञान, संपत्ति और शक्ति के विकास की दिशा में निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। लेकिन ज्ञान, संपत्ति और शक्ति की सार्थकता तभी है जब इससे सत्य, प्रेम और न्याय की प्रतिष्ठा की जा सके। हमारे जीवन का मूल उद्देश्य स्वतंत्रता, मित्रता और समानता की उपलब्धि करना है ताकि हम मौन, प्रार्थना और शांति के दिव्य परमात्म लोक में शाश्वत प्रवेश पा सकें। समय योग का अनुपालन करने से हमें अपने वास्तविक व्यक्तित्व की पहचान करने में मदद मिलती है। जब हम समय के वर्तमान प्रवाह के साक्षी बन रहे होते हैं उस समय हमारी सुषुम्णा नाड़ी सक्रिय हो जाती है और हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा सहज ही उच्चतर चक्रों की ओर बढ़ने लगती है। जो समय के वर्तमान प्रवाह के प्रति हमेशा सजग है उसी को संतुलित व्यक्ति कहा जा सकता है। जिसकी दिनचर्या में सहजता, संतुलन और साक्षीभाव सदैव कायम है, केवल वही सही पथ पर है। अपने अतीत से सबक लीजिए, भविष्य के लिए अपने को तैयार कीजिए, लेकिन वर्तमान में सक्रिय रहिए। समय का पालन कीजिए, लेकिन सहज बने रहिए। उसके लिए तनाव मोल नहीं लीजिए। यदि सही समय पर आप काम आरंभ करेंगे और श्रम की गति को संतुलित बनाए रखेंगे तो काम सही समय पर समाप्त हो जाएगा। समय योग के साधकों के आराध्य हैं – सूर्य, धरती और चन्द्रमा। मानव जीवन के मूल आधार ये तीन ही हैं और इन्हीं से मानव का जीवन सर्वाधिक प्रभावित और प्रेरित होता है। इसलिए किन्हीं कल्पित देवी-देवताओं की आराधना करने से बेहतर है इन प्रत्यक्ष, जीवन्त और साकार तत्वों की आराधना करना।

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

"समय के प्रवाह के प्रति सतत जागरूक रहते हुए हमेशा वर्तमान क्षण में उपस्थित रहना ही समय योग है।"


अत्यन्त अर्थपूर्ण है |लेकिन निम्नलिखित वाक्य में "साक्षीभाव" का क्या अर्थ है ?


"जिसकी दिनचर्या में सहजता, संतुलन और साक्षीभाव सदैव कायम है, केवल वही सही पथ पर है।"

Srijan Shilpi said...

कर्म में सहजता, विचारों में संतुलन और भावनात्मक रूप से साक्षीभाव बना रहे तो हम जिंदगी की हर परिस्थिति में सही पथ पर अटल बने रह सकते हैं। अनासक्त भाव से संतुलित मन के साथ सहज रूप से कर्म में लगे रहने की कला ही योग है, जिसे मैं "समय योग" की संज्ञा देता हूँ।