Friday, March 17, 2006

चिर-प्रतीक्षित

कब से सुन रहा हूँ सुदूर से आती हुई तुम्हारे पदचापों की मधुर ध्वनि आ रहे हो तुम धीरे-धीरे हमारे बीच तुम्हारे आने की ख़बर हमें सदियों से है हम हर घड़ी तुम्हारे ही इंतजार में रहे हैं। पहुँच चुके हैं धरा पर तुम्हारे पगों के स्पंदन आ तो चुके हो मगर छुपे हो आम लोगों की ओट में न हो तुम कोई राजकुमार और न ही किसी पंडित की संतान न तो तुम किसी नेता के बेटे हो और न ही किसी अफसर के पुत्र इतने सीधे-साधे हो तुम कि लगते नहीं कि तुम ही हो। पुराणों ने कह दी थीं तुम्हारे आने की कथाएँ नास्त्रेदमस ने भी कर दी भविष्यवाणी हमें तुम्हारा नाम-पता मालूम था हमेशा से और तुम्हारे रूप व कर्म के विवरण भी लेकिन तुम तो वैसे लगते ही नहीं ! सूर्योदय की सुनहरी किरणों में झलकता था तुम्हारा तेजोमय रूप वर्षा की इंद्रधनुषी फुहारों में निखरता था तुम्हारी प्रभा का वलय हवा की बहारों में नादित होते थे तुम्हारे मधुर अस्फुट स्वर हर साँस के साथ उमड़ती थी प्यास तुम्हारी चिन्मयी शक्ति की लहरियों से जुड़ने की लेकिन अब तुम जब इतने सम्मुख हो तो तुम्हारी सहजता और सरलता ही असाधारण लगती है। क्षमा करना अवतारों-पैगम्बरों की कथाओं और दावों ने बुद्धि भ्रष्ट कर दी है हमारी शब्दों के भ्रमजाल से विकृत हो चुकी है संप्रेषण की हमारी शक्ति नेताओं, अभिनेताओं और साधुओं ने दिग्भ्रमित कर दिया है हमें निष्प्राण हो चुकी है हमारी संवेदना हम तुमको ठीक से पहचान नहीं पा रहे हैं। लेकिन फिर भी दिल में पक्का विश्वास है तुम वही हो जिसका हमें जन्मों-जन्मों से इंतजार है जिसके मन में न अहंकार है और न ही कोई स्वार्थ है जिसकी शक्ति प्रतिबद्ध है न्याय और धर्म के लिए हमारी सेवाएँ समर्पित हैं तुम्हारे ही लिए।

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